Tuesday, December 6, 2011

श्रद्धांजलि to Star of Romance DEV ANAND


श्रद्धांजलि 

मेरा कौन था वो
क्या नाता था
जो जाते जाते रुला गया 
मेरा मीत नहीं
मेरा गीत नहीं 
मेरे दिल में फिर भी समां गया

वो नूर का सच्चा बंद था
वो प्रेम का दीप जलाता था
जब नूर के साथ चमकता था
तब नूर भी शर्माता था

ग़म उसका सजदा करते थे
उल्फ़त के गीत सुनाता था
जीवन से प्रीत निभाने का
वो सबको पाठ पढ़ता था

प्रियतम उसके सजदे में था
वो रोक न पाया अब ख़ुद को
यम उसके सजदे में था 
वो चला गया है सत पथ को

न भाई था, न बन्धु वो
न उस्से रक्त का नाता था
वो साज़ है मेरी धड़कन का
वो लहू में गीत बहता था  । 
                                                        ------   संकल्प सक्सेना 

Sunday, November 13, 2011

पता नहीं


पता नहीं

कुछ  है तू मेरे लिए
क्या है ? पता नहीं

सूरज की किरण है
या चंदा की रौशनी
क्या है ? पता नहीं
कहीं दरख़्त की छांव है
या जीवन की नाव है 
क्या है पता नहीं

शिल्पकार की मार है
कहीं प्यार भरी सौगात है
क्या है पता नहीं

फ़लक पे छ रही है
मेरे दिल को लुभा रही है
चाँद चमकता रहे
खुद को जला रही है
क्यों ? पता नहीं

मेरे दिल की आवाज़ है
या गीतों का साज़ है
क्या है पता नहीं
शायर की ग़ज़ल है 
या कवी का प्रकाश है 
क्या है पता नहीं

मेरे जीवन की ज्योत है
राहों का प्रकाश है
क्यों ? पता नहीं

क्या कहूं, शायर की अभिलाषा है तू
क्यों ? पता नहीं ।
                                                                                               ___संकल्प सक्सेना ।
                                                   

Monday, October 24, 2011

॥ शुभ दीपावली॥




यह अंधेरों का जलवा है, सजदे में उजाले हैं 

यह रात का जलवा है, सजदे में सितारे हैं

यह हुस्न का जलवा है, संग अँधेरे उजाले हैं 
                          
__संकल्प सक्सेना ।                                                                                                                                           

॥ शुभ दीपावली॥



बिखरती ज़ुल्फें हैं, अमावास की रात है,
दमकती शमा है, दीपावली की रात है ।
                                                                         __ संकल्प सक्सेना ।

Monday, October 10, 2011

श्रद्धांजलि


श्रद्धांजलि 

दोस्तों, आज सुबह की ख़बर कुछ ऐसी पड़ी मेरे कानो पर
रोने लगी कलम मेरी नैनों से बरसे नीर।

फिर ख़ामोश हुए ग़ालिब,
फिर से चुप हैं मीर,
आज ख़ामोश है ग़ज़ल
नज़्म बहा रही है नीर ।

बदला था हमें उन ने 
अब छोड़ गए हैं
दे गए हैं यादें
हम संभालेंगे पीर ।
                            ___ संकल्प सक्सेना.

Saturday, September 24, 2011

कविता


कविता 

धड़कने तेज होने लगती हैं
मन खोने लगता है
जब नाम कभी तुम्हारा लब पे आता है,
प्रेम के समंदर में मन गोते लगता है
जब नाम कभी तुम्हारा, लब पे आता है 

कभी संगीत सहलाता है
कहीं ग़ज़ल बनती है
कभी अनाहद नाद
मेरे दिल को भाता है
जब नाम कभी तुम्हारा, लब पे आता है 

मैं भी तो तुम्हारी राह का पथिक हूँ
कहीं राह न भटकूँ,
प्रेम के दीप जलदो
सदा रहूँगा चरणों में
बस एक बार आवाज़ लगादो 
                                   ___ संकल्प सक्सेना 


                                     

Saturday, September 17, 2011

जीवन


जीवन

तनहा सी शाम है
चुभता हुआ सन्नाटा है,
सब कुछ है पास में,
फिर भी नमी है आँख में।

यादों का बवंडर है,
कहीं सुरूर, कहीं बेचैनी का मंज़र है।

जीवन  इक अगन है,
कहीं जलन, कहीं सुलगन है।

आँखों में है कई अरमां
कहीं कोशिश,
कहीं मुक़ाम हैं।

क्या कमाएगा? 
क्या लेजएगा इंसान?
कहीं राख़,
कहीं मिट्टी है 
                                             __ संकल्प सक्सेना 

Sunday, September 11, 2011

याद

याद

तुम्हारी याद मैं झुलसता हूँ अब मैं,
इस दर्द के सहारे जीता हूँ  अब मैं,
कि आओगे तुम नज़दीक मेरे,
तेरी राह को ही तकता हूँ अब मैं,
तुम्हारी याद मैं झुलसता हूँ अब मैं ।

कलि तो अब बनी होगी फूल,
महके आँगन को तरसता हूँ अब मैं
ये सावन कि बारिश ,बगिया कि ख़ामोशी, 
झूलों कि अचलता , समझता हूँ मैं,
तुम्हारी याद मैं झुलसता हूँ अब मैं ।

तेरे आने से महकेगा सावन ,
सावन में वसंत को तरसता हूँ अब मैं
हे कान्हा ! मेरे इस दर्द को समझो
तेरे आसरे अब तो बैठा हूँ अब मैं
तुम्हारी याद मैं झुलसता हूँ अब मैं ।
                                                    ___संकल्प सक्सेना.
            

Friday, September 2, 2011

आहट


आहट 

शाम है, तन्हाई है, और किसी के आने की आहट
उनकी राहों में महकती यादों की आहट,
सुगन्धित झरोखों में क़दमो की आहट ,
यह आहट है दिल के तड़पने की आहट 

उनके दीदार को मचलने की आहट ,
यह हुस्न से नहीं  रूह से मिलने की आहट,
यह आहट है उनके तड़पने की आहट 

ख़्वाबों में आते हैं,लेके घटाओं की आहट ,
निगाहोनो से चमकती बिजली की आहट,
नूर की बारिश में नहाने की आहट,
यह आहट है हमारे मिलने की आहट 

                       ____ संकल्प सक्सेना 

Saturday, August 27, 2011

पहचान तेरी


पहचान तेरी


गिर गिर कर उठ
उठ उठ कर गिर
गिर कर उठना 
पहचान तेरी
यह जीवन है 
इस में घिरना
लड़कर आना 
पहचान तेरी ।

सुख सुख कर,
सूख गए तुम हो
ग़म से कर ले 
पहचान तेरी ।

यह जीवन ग़म से 
सजता है,
ग़म से लड़ने में 
शान तेरी  ।

आंसू छलके,
 जब ग़म जीते 
यह सुख के आंसू
शान तेरी ।


गिर गिर कर उठ
उठ उठ कर गिर
गिर कर उठना 
पहचान तेरी
                                                     _ संकल्प सक्सेना.


Saturday, August 20, 2011



कविता

क़लम उदास है
लिखने की प्यास है ,
अब किस्से कहूँ मैं जाके
मौसिक़ी उदास है.

मेरे प्रेरणा सरोवर 
तुम दूर क्यूँ हो बैठे,
रोती है क़लम मेरी,
मुक़तक उदास हैं.

जब लिखते हैं पंक्ति,
रो पड़ती है पांति,
सिसकती है क़लम,
कवि की जुबानी.

ख़त्म होगी स्याही 
रूठेगी रुबाई,
खोजेगी दुनिया,
ख़ुदाई दुहाई .
                  ____संकल्प सक्सेना .

शायरी


शायरी 

न कर शायरी को बदनाम 
हुस्न का नाम देकर
यह तो ख़ुदा का मुक़ाम है.

जिस्म फ़रोशी नहीं शायरी 
यह तो रूह का पयाम है.

दिल्लगी नहीं शायरी 
जो किसी हुस्न पर बर्बाद करें,
यह  तो एक शमा है 
जो उस नूर का पयाम है.

हुस्न पर शेर कसा
बदनाम किया शायरी को,
सच्चा शायर है वही
जो हुस्न की राह पर
अपना सर्वस्व क़ुर्बान करे
शायरी नाख़ुदा की,
शायर को भवसागर से पार करे.

शायरी है सजदा करना,
नूर के दरबार मैं ,
उस नशेमन की ललक है,
तेरे इस संसार में.

शायरी न  हुस्न है,
शायरी न है शबाब,
शायरी है बज़्म-ए-उल्फ़त,
शायरी से कायनात .
                               ___संकल्प सक्सेना 

Sunday, August 14, 2011

रण भूमि


रण भूमि

यह कविता हमारी  थल सेना, वायु सेना,नौ सेना  और स्वाधीनता संग्राम के सभी शहीदों  को समर्पित है.
I AM PROUD OF OUR INDIAN DEFENCE FORCES.

बरस रहे थे अंगारे,चल रही थीं गोलियां,
फिर भी अपना सीना ताने,
 बढ़ रही थी टोलियाँ.

वहां से बरसे थे अंगारे,
यहाँ से बरसे थे शोले,
घमासान था बड़ा ग़ज़ब का
काँप उठे थे नभ तारे.

कहीं डटे थे भगत सिंह,
तो कहीं डटे थे अर्जुन वीर,
धरती मान की लाज बचाने, 
उतरे रण मैं अभिमन्यु वीर.

लहू था वीर सपूतों का,
अभिषेक था भारत माता का,
स्वतंत्रता की देवी ने,
मांगा बलिदान सपूतों का.

बरक चढह के मुस्कानों की,
कुर्बान कर दिए पाने शीश,
नाच उठी थी मौत की देवी,
घरों से गूंजी थी अब चीख़.

बहनों ने खोये अपने भाई,
माँओं ने गंवाए अपने लाल,
क्रंदन के स्वरों के बीच,
स्वतंत्रता थी शर्मसार.

जिए नहीं हो अमर हुए हो,
कभी न भूलेंगे तुमको ,
गाथाओं की संजीवनी से,
नवजीवन देंगे तुमको.

                                ___ संकल्प सक्सेना 



चिंगारी


चिंगारी


सबसे पहले तो सभी भारत वासियों की तरफ़ से ६४वे स्वाधीनता दिवस की बधाई.
यह कविता मैं श्री. अन्ना हज़ारे जी  और श्री. अरविन्द केजरीवाल को समर्पित करत हूँ.
मैं सबसे  अपील   करता हूँ की उनका बढ़ चढ़ कर साथ दें ताकि, सही लोकपाल बिल पास हो और  हमारे देश से भ्रष्टाचार दूर हो सके .
 

चिंगारी अभी बुझी नहीं,
अभी आग लगाना बाकी है,
जल जायेगी होलिका,
बस होली आना बाकी है.

नन्हे से कण भले हों हम,
जो संग जलें, अंगार बने,
फिर आओ जिसमे हिम्मत हो,
देहन होलिका बाकी है.

जल रही है होलिका,
 जल रहे अंगारे हैं,
रंग उनका बसंती है,
बस राख़ लगाना बाक़ी है .
                   ____ संकल्प सक्सेना 

Saturday, August 6, 2011

घर



घर 

दूर घर से अपने, रह रहा हूँ अब मैं,
घर शब्द का मोल, समझ रहा हूँ अब मैं
दूर यहाँ परदेस में, तनहा जी रहा हूँ अब में
घर ही है जन्नत, समझ रहा हूँ अब मैं .


वो पापा की डांट, मम्मी का दुलार
भाई की शरारत, दीदी का प्यार
इन सब के लिए तड़प रहा हूँ अब मैं
घर शब्द का मोल, समझ रहा हूँ अब मैं .


मेरे माता पिता को नमन है शत-शत
त्याग से उनके पहचान, अपनी
बना रहा हूँ अब मैं
अरमानों पे उनके खरा उतरने की ,
जी तोड़ कोशिश कर रहा हूँ अब मैं
घर ही है जन्नत, समझ रहा हूँ अब मैं.


परदेस मैं हूँ, यादों को संजोये
घर जाने के मौके को, तरस रहा हूँ अब मैं
भाई की शरारत, दीदी का प्यार,
माँ बाबा के दीदार को तरस गया हूँ अब मैं,
घर शब्द का मोल, समझ रहा हूँ अब मैं
घर ही है जन्नत, समझ रहा हूँ अब मैं .
____ संकल्प सक्सेना.

Friday, August 5, 2011

कविता क्या है? (What IS POETRY)

कविता क्या है? (WHAT IS POETRY?)


How the first poem might be written

वियोगि होगा पहला कवि,
आह से उपजा होगा गान
छलक कर आँखों से चुप चाप
बही होगी कविता अन्जान .
                                                                        __ सुमित्रा नंदन पन्त

Poetry is nothing but a condition of stress in poets mind.

In the world of poetry stress is classified into two types
  1. Stress due to hardships in life.
  2. Stress due to Happiness.
Stress due to hardship in life is easy to grasp but Stress due to happiness is something which is not easily accepted by human mind.

For a poet this stress is nothing but jumbling of different kind of thoughts.

For example, if we meet someone or something inspires us then mind of a poet goes into continuous thinking process. This is very much similar to boiling of sea water.
Where, sea is similar to sea of knowledge (Depends on poet’s caliber).

The continuous thinking process results in cloud of intelligent thoughts because refining process on knowledge has already taken place during evaporation (continuous thinking).

The result is a heart touching poem which is nothing but shower of wisdom bestowed on the world by a poet.

So, we can also define poetry as a measure of person’s level of wisdom.

More the level of wisdom best is the poetry.

Comments and suggestions will be positively entertained.

                                      - SAXENA SANKALP RAJENDRA.

Tuesday, August 2, 2011

सियाह रात - २


सियाह रात - २

सियाह रात के साए में ,
जलती हुई शमा के बीच
ग़ज़लों के कैकशां में 
एक ग़ज़ल है मेरी बाहों में.

दिल में जज़्बात तूफ़ान भरे
आह में सुलगते अरमान मेरे
टकराती मंद हवाओं में 
देखो जाम से जाम मिले.

मदहोशी का यह आलम है
बारिश में भी एक सुलगन है,
बुझी हुई शमा के बीच
चरम तक पहुंचा प्रेम का बीज.
                                                                                        ____संकल्प सक्सेना 

सियाह रात - १


सियाह रात - १ 

सियाह रात के साए में,
चरागों से थे तुम चमके 
मेरे जीवन की राहों में ,
ख़्वाबों का जहां बनके

तुम्हे ही देखते थे हम, 
जो राहों में अँधेरा हो 
अँधेरी राह से चलकर ,
 उजालों तक थे हम पहुंचे 

तुझे मिलने की ख्वाहिश थी
यह हसरत रह गई दिल में,
मेरे अश्कों के दर्पण में में
तेरा ही नज़ारा हो.

मेरी आहों में आंसू हैं,
यह गम हैं तेरी उल्फ़त के
तेरे ही नूर की बारिश में 
अब मुझको नहाने दे.
                                     ____ संकल्प सक्सेना 

मंजिलें और इमारतें


दोस्तों,

यह कविता मैं आप सबके साथ बाँट रहा हूँ.
ब्लॉग पैर यह मेरी पहली कविता है.
पिछले साल मैंने अपने करियर की शुरुवात की.
पुणे  मैं जब मैं आया तो साइबर सिटी मगरपट्टा देख के मेरे होश उड़ गए.
वहीं से जन्मी  यह कविता.
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मंज़िलें और इमारतें  

खिड़की से बाहर देख रहा हूँ,
ऊंची ऊंची इमारतें,
अपनी ज़िन्दगी देख रहा हूँ,
ऊंची ऊंची मंजिलें 

फर्क क्या है ! इमारतों और मंज़िलों में ?
हमारी कल्पना का प्रतिबिम्ब हैं इमारतें.
फर्क क्या है ! इमारतों और मंजिलों में ?
हमारी मंज़िलों का मुक़ाम हैं इमारतें.

ज़िन्दगी में अपनी झांको ,
मज़दूर लगे हैं अरमानों के ,
बन रही हैं इमारतें
मेहनत, लगन, ईमान हैं खम्बे 
बन रही हैं इमारतें.

इंसान का दिल फौलाद भरा है,
जिस दिन यह जाग जाएगा
पहुंचेगा मंज़िल आगे, सजदा करेंगी इमारतें.
                                                                    --- संकल्प सक्सेना