Sunday, September 11, 2011

याद

याद

तुम्हारी याद मैं झुलसता हूँ अब मैं,
इस दर्द के सहारे जीता हूँ  अब मैं,
कि आओगे तुम नज़दीक मेरे,
तेरी राह को ही तकता हूँ अब मैं,
तुम्हारी याद मैं झुलसता हूँ अब मैं ।

कलि तो अब बनी होगी फूल,
महके आँगन को तरसता हूँ अब मैं
ये सावन कि बारिश ,बगिया कि ख़ामोशी, 
झूलों कि अचलता , समझता हूँ मैं,
तुम्हारी याद मैं झुलसता हूँ अब मैं ।

तेरे आने से महकेगा सावन ,
सावन में वसंत को तरसता हूँ अब मैं
हे कान्हा ! मेरे इस दर्द को समझो
तेरे आसरे अब तो बैठा हूँ अब मैं
तुम्हारी याद मैं झुलसता हूँ अब मैं ।
                                                    ___संकल्प सक्सेना.
            

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