Sunday, November 13, 2011

पता नहीं


पता नहीं

कुछ  है तू मेरे लिए
क्या है ? पता नहीं

सूरज की किरण है
या चंदा की रौशनी
क्या है ? पता नहीं
कहीं दरख़्त की छांव है
या जीवन की नाव है 
क्या है पता नहीं

शिल्पकार की मार है
कहीं प्यार भरी सौगात है
क्या है पता नहीं

फ़लक पे छ रही है
मेरे दिल को लुभा रही है
चाँद चमकता रहे
खुद को जला रही है
क्यों ? पता नहीं

मेरे दिल की आवाज़ है
या गीतों का साज़ है
क्या है पता नहीं
शायर की ग़ज़ल है 
या कवी का प्रकाश है 
क्या है पता नहीं

मेरे जीवन की ज्योत है
राहों का प्रकाश है
क्यों ? पता नहीं

क्या कहूं, शायर की अभिलाषा है तू
क्यों ? पता नहीं ।
                                                                                               ___संकल्प सक्सेना ।
                                                   

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