Wednesday, September 19, 2012

वृक्ष और बादल


वृक्ष और बादल


बादल कभी बरसे नहीं 
प्यासे इन्सां के लिया
ये तो बरसे हैं उनके लिए
जो झुलसे सबकी छाँव के लिए ।

क्या किया मानव ने उनके लिए
जले जो सबकी छाँव के लिए
क्या जिया कभी है ये ख़ुद भी
और के जीवन प्रान के लिए 

जल जल के तन है हरा किया
महके पवन, वसुधा के लिए
मानव ने चलाई विष वायु
अपने ही निज स्वार्थ के लिए 

इसलिए नहीं बरसे जलधर
जहां इंसां बस्ती बनता है
ये तो बरसे उस तरु के लिए
जो जला है प्यासी माँ के लिए  
                                                                 ___ संकल्प सक्सेना 

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