Wednesday, May 1, 2013

टूटे सपने


टूटे सपने

कितने अरमां  थे
कितने सपने थे
शीशे से नाज़ुक
फूल से कोमल

एक झटका लगा
बिखर गया कांच
चूर हुए सपने
घायल हुए पाँव

आँखों में  आंसू
टूटे सपनों के घाव
चिल चिलाती जलन
थके हुए पाँव

फिर भी चल रहा है 'लवि'
राहों पे अपनी 
चुभे हुए कांच हैं  
लहु  लुहान हैं रास्ते। 
                                                   ____ संकल्प सक्सेना 'लवि' 

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