टूटे सपने
कितने अरमां थे
कितने सपने थे
शीशे से नाज़ुक
फूल से कोमल
एक झटका लगा
बिखर गया कांच
चूर हुए सपने
घायल हुए पाँव
आँखों में आंसू
टूटे सपनों के घाव
चिल चिलाती जलन
थके हुए पाँव
फिर भी चल रहा है 'लवि'
राहों पे अपनी
चुभे हुए कांच हैं
लहु लुहान हैं रास्ते।
____ संकल्प सक्सेना 'लवि'
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