तन्हाई
बसंती फूल झड़ गए
पौधों की टहनियां प्यासी हैं
कांटे बिखरे हैं राहों में
चलने की मेरी बारी है।
राहों में जलते पाँव मेरे
गर्मी में सुलगते घाव मेरे
नहीं दूर तलक कोई मंजिल
क्रंदन स्वर गूंजे राहों में।
मेरे दिलके हर इक कोने में
तन्हाई डाले है डेरा
रिस्ता है खून दिल से अब
साँसों का छोटे है फेरा।
'लवि' समय की वीरां राहों में
चिता जली अरमानों की
धुंआ हुईं सब यादें हैं
अस्थि विसर्जित आहों की।
__ संकल्प सक्सेना 'लवि'
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