Saturday, August 3, 2013

तन्हाई 

नीला नभ है, नीला सागर 
बीच में है आशाओं का घर 
खोल के खिड़की देख रहा हूँ 
अम्बर तक तन्हाई का घर।

तट रेखा से, क्षितिज पटल तक 
नैनो से फिर हृदय पटल तक 
नील नभी तन्हाई छाई 
यादों की विस्मृत शहनाई।

मैं जो देखूं खिड़की बाहर 
दूर तलक सागर ही सागर 
क्षार हुई अंसुवन से मेरे 
छलकी है लहरों की गागर।

उमस रहा है तन मन मेरा 
नहीं है जीवन चैन का खेला 
सांझ हुए जो तू न आया
मिटटी होगा ये तन मेरा।
                                                          ___ संकल्प सक्सेना 'लवि'।