Saturday, November 1, 2014


मैं तेरे रात भर, गीत गात रहा
तू मुझे ख़्वाब में, गुनगुनाता रहा।

जाम भरते रहे, होश उड़ते रहे
रंग आरिज़ पे, साक़ी के छाता रहा। 

रूप है इश्क़ का, हुस्न फूलों का है
मैं नज़ाक़त, के माने बताता रहा।

वो शिकारी नहीं, मेरा क़ातिल नहीं
शौक़ से मैं, क़यामत बुलाता रहा।

मुन्तज़िर है नज़र, मुस्कराएं 'मुरीद'
हुस्न पर्दे  से, ख़ुश्बू लुटाता रहा।
                                  __संकल्प सक्सेना 'मुरीद'।

Saturday, August 30, 2014

चरवाहा
 
 वो साज़ बजाता उल्फ़त का
वो प्रेम गीत है बरसाता
उसकी धुन पे है नाचे मन
सबके दिल की बजती सरगम 

हर राग पे पंच्छी इतराते
वो गीत सलोने हैं गाते
गीतों की रिम झिम बारिश में
वो दिखलाता है अपना फ़न
उसकी धुन पे.…

खेल यही है दुनिया का
सरगम पे थिरके गीत कई
रहे तो ख़ुश्बू फ़ैलाई
गए तो छलके अंतर्मन
उसकी धुन पे.…

ये साज़ हमेशा बजता है
वो कई तराने रचता है
सब गाते अपनी ही सरगम
सुख दुःख पे है थिरके धड़कन
उसकी धुन पे है नाचे मन
सबके दिल की बजती सरगम।
__ संकल्प सक्सेना 'मुरीद'।

Saturday, August 23, 2014




मेरी क़लम रुकी नहीं है
ख्यालों की भी कमी नहीं है
फिर भी जाने-क्या हो जाता है
मेरे दिल को जो बहकाता है।  

कभी हुआ करती थी मंज़िल
चित्र नयन से बह आते थे
हृदय-पटल में बसने वाले
कागज़ पर अंकित हो जाते थे। 

अब भी वो आते हैं लेकिन
कोई किनारा पास नहीं
नूतन गीत कहाँ से लाऊं
दर्पण में दीदार नहीं।

नित्य जिन्हें चाहा करता
वो बादल कैसे सूख गए
नीर-नयन से बहने वाले
अधरों पर क्यों सूख गए।
                                      __ संकल्प सक्सेना 'मुरीद'।

Sunday, June 15, 2014


सफ़र

नज़दीकियों में फ़ांसला , फिर भी सफ़र चलता रहा,
और राह - ए - इश्क़ पर, आशिक़ सदा बढ़ता रहा।

खो जाऊंगा मैं इश्क़ में, ये आशिक़ी का दौर है
तदबीर से तक़दीर है, ताबीर तू करता रहा।

मुख़्लिस मेरा है आइना, है शौक़ तुझको देखना
ममनून हूँ मैं इस क़दर, साया तेरा पड़ता रहा।

अत्फ़ाल है अब हिज्र ये,इसका मुझे कुछ ग़म नहीं
मुझको तो बस है डूबना, दिल की सदा सुनता रहा।

आब-ए-आतिश बह चला, पलकें मेरी छोड़ कर,
हुस्न पे इश्क़ है हिज़ाब, दीदार यूं होता रहा।

रंगीं फ़ज़ा-ए-दीद में, कुछ इस तरह खोया 'मुरीद',
रंगीनियों में इश्क़ की, तेरा नशा चढ़ता रहा ।
__ © संकल्प सक्सेना 'मुरीद'।

तदबीर: प्रयत्न/कर्म
ताबीर: फ़लादेश
मुख़लिस: beloved
अत्फ़ाल: बच्चों जैसा
आब-ए-आतिश: liquid fire

Friday, May 30, 2014



आज लगभग जगजीत जी और मेहंदी हसन जी जैसे ग़ज़ल गायकों को गए २ साल से ज़्यादा समय बीत चुका है।  उम्र कि मजबूरियों की वजह से ग़ुलाम अली जी ने भी गाना छोड़ दिया है। इस दौरान कोई नया ग़ज़ल गायक न तो सामने आया न ही कोई एल्बम रिलीज़ हुयी।  ऐसा लगता है जैसे अब ग़ज़ल जो हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग रही है, सच में दम तोड़ रही है। कोई ऐसा नज़र नहीं आता जो इसका हाथ थामे और इसे दूर तक ले जाए।  मेरी नज़र में ग़ज़ल कहने और सुनने वालों की कोई कमी नहीं है और शायद कभी नहीं होगी लेकिन कमी ऐसे लोगों को मौक़ा देने में ज़रूर आ गई है जो ग़ज़ल को आगे लेके जाना चाहते हैं।

कहाँ गई  है ग़ज़ल ?

चंद दरवाज़ों में, सिमट गई है ग़ज़ल
फिर से मौकों पे, निपट गई है ग़ज़ल।
 
फिर किसी दिल के निकट, गई है ग़ज़ल
फिर से धड़कन को, तरस गई है ग़ज़ल।

मुक़र्रर हो ! ये सदा, ग़ुम हुई है कहीं
शोर के आलम में, झुलस गई  है ग़ज़ल ।

न साक़ी हैं, न पैमाने, बज़्म खाली है
अब तो रिन्दों को, तरस गई है ग़ज़ल ।

तलत, मेहंदी के, सुरों ने संवारा था जिसे
उनके  नामों की, रह गई है ग़ज़ल।

कुछ 'मुरीद' आये हैं, दर पे उसके
अब तो अफ़साना, बन गई  है ग़ज़ल। 
                                        __ संकल्प सक्सेना 'मुरीद'।

Saturday, May 3, 2014


अर्थ-१ 

खोज रहे थे अर्थ 
जीवन क्यों है व्यर्थ 
भटके है ज़िन्दगानी
चारों तरफ़ अनर्थ।

अर्थ में ढूंढें अर्थ 
जीवन बना है नर्क 
नहीं मिलेगा कुछ भी 
खोज रहेगी व्यर्थ।

प्रेम का ढूंढो अर्थ 
जीवन बनेगा स्वर्ग 
गुरु प्रेम हो जाए 
तो पा जाओगे अर्थ।

राहें बड़ी कठिन हैं 
रुकना नहीं डगर में 
'मुरीद' बनके चलना 
मुराद होगा अर्थ।
__ संकल्प सक्सेना 'मुरीद'। 


Wednesday, April 2, 2014




आवाहन 

जहां कभी 
ख़ुशियाँ थीं
बहारें थीं 
गीतों के गलियारे थे 
ग़ज़लों से महके ग़लीचे थे 
नज़मों में  ढलती शाम थी 
वहीं आज ख़ामोशी है,सन्नाटा है 
शाखों से टूटे पत्तों पर 
पतझड़ के चलने कि, बेबस आहट है 

लेकिन! फिर भी मुझे इक आस नज़र आती है 
फिर से कहीं वो, एक उम्मीद जगा जाती है 
अँधेरे कि चादर को हल्का सा उठाती है 
नन्ही सी गौरैया बहारों को बुलाती है 
यका याक उषा कि किरण नज़र आती है 
समर में , निशा से, उषा जीत ही जाती है 
खोए हुए कलरव को, वो फिर से जगाती है 
गाओ मेरे दीवानों , वो सबको बुलाती है। 
                                              __ संकल्प सक्सेना 'मुरीद'। 

Saturday, March 29, 2014


एहसास-ए- मोहब्बत

एक  सतरंगी फ़ुहार थी, बहती मन कि बयार थी
खोती थीं दिल कि धड़कने, आँखों से रिस्ती धार थी।

खिलती कलियाँ जब बाग़ में , पीहू कोयल कि पुकार थी
भंवरों कि गुंजन, फिर वही, गीतों कि बरसती धार थी।

क्यों सागर मरुथल हो रहा, नदिया कि कैसी चाल थी
नयनों को झुका के आ गई, धड़कन सागर कि निसार थी।

मेरी पहली तहरीर थी, 'वारिस' की जैसे हीर थी
गीतों कि धुन में ढल गई, सरगम थी या वो प्यार थी।

फिर रफ्ता रफ्ता खो गयी, ज्यों धुंद सुबह के प्यार की 
ख़ुद में ही खोते हैं 'मुरीद', यादों कि इक झनकार थी।
                                                __ संकल्प सक्सेना 'मुरीद'।





 

Sunday, February 16, 2014

जिसे हम प्यार कहते हैं, वो जलता है शमाओं में
तड़पता है वो बिजली सा, मचलता है शुआओं में।

क़यामत बनके जो गिरती है आँखों से तेरे मानिन्द
वो बिजली कौंध जाती है, मेरे दिल कि हवाओं में।

हवा चलती है तो, जर्रों में  उठती है जवानी सी
बहारें फिर मचलती हैं, सिमटती हैं अदाओं में।


मोहब्बत दिल के ज़र्रों में, असर यूं छोड़ जाती है 
तेरी धड़कन में  खोता हूँ, मैं खोता हूँ वफ़ाओं  में।
                                         
'मुरीद' अब जान जाते हैं, कहाँ है रोशनी तेरी
तेरी साँसों की आहट से, जो बस्ती है दुआओं में।
                                              __ संकल्प सक्सेना 'मुरीद'।

Saturday, January 4, 2014

कुछ तो है जो आँख भींचे, ख़ींच कर लाता मुझे
और तेरी महफ़िलों में, छोड़ कर जाता मुझे।

आज तेरे रास्तों पर, बढ़ रहे मेरे क़दम
और उस रूहानियत में, छोड़ कर जाता मुझे।

जो समय कि बंदिशों के, पार है बैठा उधर,
वो समय के रास्तों पर, छोड़ कर जाता मुझे।

अनगिनत प्यालों के शीशे, जो हैं बिखरे राह में
य़ाद में  उन महफिलों की, छोड़ कर जाता मुझे।

तुम भले हो दूर कितने, फिर भी मैं हूँ देखता
एक किरन के रास्ते जो, छोड़ कर जाता मुझे।

झील है तेरी निग़ाहें, जिस में जग है डूबता
नाख़ुदा बन पार उसके, छोड़ कर जाता मुझे।

तेरे संग-ओ-दर पे है, इस आस पर बैठा 'मुरीद'
कौन है जो इस किनारे, छोड़ कर जाता मुझे।
                                         ___ संकल्प सक्सेना 'मुरीद'।