Sunday, February 16, 2014

जिसे हम प्यार कहते हैं, वो जलता है शमाओं में
तड़पता है वो बिजली सा, मचलता है शुआओं में।

क़यामत बनके जो गिरती है आँखों से तेरे मानिन्द
वो बिजली कौंध जाती है, मेरे दिल कि हवाओं में।

हवा चलती है तो, जर्रों में  उठती है जवानी सी
बहारें फिर मचलती हैं, सिमटती हैं अदाओं में।


मोहब्बत दिल के ज़र्रों में, असर यूं छोड़ जाती है 
तेरी धड़कन में  खोता हूँ, मैं खोता हूँ वफ़ाओं  में।
                                         
'मुरीद' अब जान जाते हैं, कहाँ है रोशनी तेरी
तेरी साँसों की आहट से, जो बस्ती है दुआओं में।
                                              __ संकल्प सक्सेना 'मुरीद'।