Saturday, August 30, 2014

चरवाहा
 
 वो साज़ बजाता उल्फ़त का
वो प्रेम गीत है बरसाता
उसकी धुन पे है नाचे मन
सबके दिल की बजती सरगम 

हर राग पे पंच्छी इतराते
वो गीत सलोने हैं गाते
गीतों की रिम झिम बारिश में
वो दिखलाता है अपना फ़न
उसकी धुन पे.…

खेल यही है दुनिया का
सरगम पे थिरके गीत कई
रहे तो ख़ुश्बू फ़ैलाई
गए तो छलके अंतर्मन
उसकी धुन पे.…

ये साज़ हमेशा बजता है
वो कई तराने रचता है
सब गाते अपनी ही सरगम
सुख दुःख पे है थिरके धड़कन
उसकी धुन पे है नाचे मन
सबके दिल की बजती सरगम।
__ संकल्प सक्सेना 'मुरीद'।

Saturday, August 23, 2014




मेरी क़लम रुकी नहीं है
ख्यालों की भी कमी नहीं है
फिर भी जाने-क्या हो जाता है
मेरे दिल को जो बहकाता है।  

कभी हुआ करती थी मंज़िल
चित्र नयन से बह आते थे
हृदय-पटल में बसने वाले
कागज़ पर अंकित हो जाते थे। 

अब भी वो आते हैं लेकिन
कोई किनारा पास नहीं
नूतन गीत कहाँ से लाऊं
दर्पण में दीदार नहीं।

नित्य जिन्हें चाहा करता
वो बादल कैसे सूख गए
नीर-नयन से बहने वाले
अधरों पर क्यों सूख गए।
                                      __ संकल्प सक्सेना 'मुरीद'।