Saturday, August 23, 2014




मेरी क़लम रुकी नहीं है
ख्यालों की भी कमी नहीं है
फिर भी जाने-क्या हो जाता है
मेरे दिल को जो बहकाता है।  

कभी हुआ करती थी मंज़िल
चित्र नयन से बह आते थे
हृदय-पटल में बसने वाले
कागज़ पर अंकित हो जाते थे। 

अब भी वो आते हैं लेकिन
कोई किनारा पास नहीं
नूतन गीत कहाँ से लाऊं
दर्पण में दीदार नहीं।

नित्य जिन्हें चाहा करता
वो बादल कैसे सूख गए
नीर-नयन से बहने वाले
अधरों पर क्यों सूख गए।
                                      __ संकल्प सक्सेना 'मुरीद'।

No comments:

Post a Comment