Monday, October 10, 2011

श्रद्धांजलि


श्रद्धांजलि 

दोस्तों, आज सुबह की ख़बर कुछ ऐसी पड़ी मेरे कानो पर
रोने लगी कलम मेरी नैनों से बरसे नीर।

फिर ख़ामोश हुए ग़ालिब,
फिर से चुप हैं मीर,
आज ख़ामोश है ग़ज़ल
नज़्म बहा रही है नीर ।

बदला था हमें उन ने 
अब छोड़ गए हैं
दे गए हैं यादें
हम संभालेंगे पीर ।
                            ___ संकल्प सक्सेना.

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