Tuesday, November 27, 2012

किनारा ढूँढ़ता हूँ



किनारा ढूँढ़ता हूँ 

नव जन्मों की राहों से, मैं आकर सांस लेता हूँ , किनारा ढूँढ़ता हूँ 
ये स्वागत में खड़ी दुनिया, मैं रोकर मुस्कराता हूँ, किनारा ढूँढ़ता हूँ 

मैं कहता हूँ मैं सुनता हूँ, ज़ुबां से लडखड़ाता हूँ , किनारा ढूँढ़ता हूँ 
मैं गिरता हूँ, मैं उठता हूँ, मैं   उठकर मुस्कराता हूँ, किनारा ढूँढ़ता हूँ 

मेरी राहें, मेरे सपने, फ़लक मंजिल बनाता  हूँ, किनारा ढूँढ़ता हूँ 
मैं जलता  हूँ, मैं तपता हूँ, कनक बन मुस्कराता  हूँ, किनारा ढूँढ़ता हूँ 

मैं बनके प्रेम का झरना, दिलों को पास लाता हूँ , किनारा ढूँढ़ता हूँ 
बहेगी प्रेम की सरिता, ख़ुशी के गीत गाता   हूँ ,  किनारा ढूँढ़ता हूँ 

समाऊंगा मैं ज्योति मैं, मैं दिल से दिल मिलाता हूँ, किनारा ढूंढता हूँ 
मरण शैया पे सोया हूँ , बिदाई गीत गता हूँ, किनारा ढूंढता हूँ  
                                                                                  ___संकल्प सक्सेना 'लवि'।

Thursday, November 15, 2012

मोहब्बत


जन्म लिया और मोहब्बत हो गयी 

पहले माँ से फिर जहां से 



फिर समय बदला 
हुआ परिचय
कहीं धरम , कहीं करम से 



हुआ एहसास यह मिटटी भी माँ है 
खेल कर जीवन की होली 
मुझको भी मरना यहाँ है 
कुछ करम करना यहाँ है 
गोद में सोना यहाँ है 



जीना नहीं कुछ पल मुझे है 
हर पल मुझे जीवित है करना 
मेरे पल के साथियों का 
हर पल मुझे गुलज़ार करना 
मेरे अपने संसार के लिए



हो जहां प्रीतम, मेरा घर 
हो जहां बचपन , मेरा घर
प्रेम की 'लवि' कल्पना में 
मिटटी मेरीभारतमेरा घर



____संकल्प सक्सेना 'लवि'


Tuesday, October 9, 2012

एक बरस पहले






हमारे दिल अज़ीज़ ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह जी को श्रद्धांजलि

एक बरस पहले

एक बरस पहले
रोई थीं ग़ज़लें
सिसकी थीं नज़्में
मौसिक़ी का फ़रिश्ता रुला जा रहा था ।

ग़म था छाया फ़िज़ां में
छलके मयक़दे भी
पीर से दिल का अम्बर फटा जा रहा था
मौसिक़ी का फ़रिश्ता रुला जा रहा था ।

दिल कोने में छिपकर
पीर ग़ालिब की छलकी
मीर के आंसुओं सा बहा जा रहा था
मौसिक़ी का फ़रिश्ता रुला जा रहा था ।

आज भी गूंजती हैं
फ़िज़ा में सदायें
हर्फ़ आते हैं लब पे, जैसे तेरी दुआएं
'लवि' यादों में तेरी बहा जा रहा था
मौसिक़ी का फ़रिश्ता चला जा रहा था
मौसिक़ी का फ़रिश्ता रुला जा रहा था ।

                                                                                ___ संकल्प सक्सेना 'लवि' ।

Sunday, September 23, 2012

राहें


राहें

कुछ ऐसी राहें होती हैं
कुछ ऐसे सपने होते हैं
जो हमको बुन्नी पड़ती है 
जो हमको पाने होते हैं ।

करीब हम उनके जाते हैं
वो शर्मा के मुड़ जाती है
हम छूने जाते हैं उनको
वो नाज़ हमें दिखलाती हैं 

कुछ ऐसी राहें होती हैं ......

दिल से होके वो जाती हैं 
नज़रों में वो बस जाती हैं
हम राहों पे जो बढ़ते हैं
वो अदा हमें दिखलाती हैं

कुछ ऐसी राहें होती हैं ......

मिलता रास्ता पगडंडी से
वो हमसफ़र हो जाते हैं
क़लम से राहें बनती हैं
स्याही सपने भर जाती हैं 

कुछ ऐसी राहें होती हैं
कुछ ऐसे सपने होते हैं
जो हमको बुन्नी पड़ती है 
जो हमको पाने होते हैं ।              
                                  ___ संकल्प सक्सेना                     




Wednesday, September 19, 2012

वृक्ष और बादल


वृक्ष और बादल


बादल कभी बरसे नहीं 
प्यासे इन्सां के लिया
ये तो बरसे हैं उनके लिए
जो झुलसे सबकी छाँव के लिए ।

क्या किया मानव ने उनके लिए
जले जो सबकी छाँव के लिए
क्या जिया कभी है ये ख़ुद भी
और के जीवन प्रान के लिए 

जल जल के तन है हरा किया
महके पवन, वसुधा के लिए
मानव ने चलाई विष वायु
अपने ही निज स्वार्थ के लिए 

इसलिए नहीं बरसे जलधर
जहां इंसां बस्ती बनता है
ये तो बरसे उस तरु के लिए
जो जला है प्यासी माँ के लिए  
                                                                 ___ संकल्प सक्सेना 

चिराग




चिराग


है चिराग लेकिन बुझा नहीं
तूफानों मैं है जला वही
अंधियारे का है शत्रु वो

और उजियारे का लाल वही ।


झंझावाती काले बादल
गरजे उस पर, बुझ जाने को,
तब चमकी बिजली आसमान से
उसक का ढाढस बंधवाने को ।



लहराई शमा, प्रेयसी उसकी
कहा साथ रहेंगे जनम जनम
जो हाथ लगाया दीपक को
मैं भस्म करूंगी बादल को ।



बादल बिखरे, सूरज आया
सहलाने अपने बालक को
वंदन में सारा जग उसके 
जिसने जीता अंधियारे को ।
                              ___संकल्प सक्सेना ।



बेमन से जब मौत ने बाहें अपनी फैलायीं , बतलाया नाम ' शहादत'
हंस के प्राण न्यौछावर कर दिए और ब्याह गए ' शहादत' ।
                                                                                     ___ संकल्प सक्सेना ।

Saturday, May 26, 2012

मेरी कोशिशों के सामने खड़ा है, मेरे मौला
मैं भी दिखादूंगा, दीवानगी किसको कहते हैं ।
                                             संकल्प सक्सेना ।

Thursday, May 24, 2012


है प्रेम द्वंद्व छिड़ा हुआ,
कविता यहाँ की मिट्टी है
हथ्यार क़लम और स्याही हैं
यही कवी की सृष्टि है ।
                 ___संकल्प सक्सेना ।



कई रंगों का भीगा हूँ,
मेरा रंग हो गया मैला
अपने रंग को भूल गया,
हूँ तेरे रंग का भीगा ।
                ___संकल्प सक्सेना ।
मुझे  बदला और ख़ुद बदल गए, जाने ज़िन्दगी में कितने दर्द भर गए
आज भी प्यार से पुरनम  घड़ियों का इंतज़ार है,
न वो हैं, न  उनके साए हैं ।
                                                   ____ संकल्प सक्सेना ।
जब इक दौर से गुज़रता हूँ
क्यूँ लगता सब तरफ़ इतना शोर
जब दौर गुज़र जाता है
होता सन्नाटा चरों ओर
फिर शोर मचाती हैं यादें
और गुज़रे तन्हाई का दौर 
देख रहा हूँ दस्तक देता
चला आ रहा नया दौर ।
                             ____संकल्प सक्सेना ।
उसने तोड़ा दिल मेरा,शुक्रिया मैं कहता हूँ

दिल में छुपा ख़ज़ाना,तुमको गा सुनाता हूँ ।


                                               
                                                     ___संकल्प सक्सेना ।
मेरे दिल के ग़ुबार कुछ यूं  पढ़ दिए,
जैसे हिज्र में मेरे तुम साथ चल दिए
                                        ...संकल्प सक्सेना ।

Monday, May 14, 2012

स्कूल डेज़

    स्कूल डेज़


देखो प्यारी सुबह आ रही
फिर आज से कल मिलेंगे
कुछ बिछड़े साथी होंगे
कुछ भीनी यादें होंगी ।



फिर लम्हे कल से निचोड़ेंगे
दिलों को अपने टटोलेंगे
फिर यादों के मैदानों में
हम खेल पुराना खेलेंगे ।



फिर सावन यादों का होगा
बरखा एहसासों की होगी
कलियाँ मुस्कानों की होंगी
हम कलरव गीत सुनायेंगे ।



अपनी यादों का ये बसंत
संजोये अपने मन में हम
फागुन के रंगों को लेके
हम छा रहे हैं दिग दिगंत ।
                     ___ संकल्प सक्सेना ।

Friday, May 4, 2012

सखी


सखी


उड़ा कर जुल्फें पवन ने 
सांझ को न्योता दिया,
आ गई वो संग एली ( बदरी )

और बरखा ले आई,

छा गयी खुशबू हवा में
सृष्टि ने ली अंगडाई ।

बदला मौसम, आया सावन
बदरी - बरखा , मन लुभावन
खिल गयीं कलियाँ चमन में
कैसा ये पावन समागम ।

जुल्फें - बदरी , सांझ - बरखा
सखी मिलन , सावन है पावन
खो रहा हूँ मैं नशे में
मेरी कविता, आइना मन ।

                                                    ____संकल्प सक्सेना ।

Sunday, February 19, 2012

कोई दोस्त है न रक़ीब है ----जगजीत सिंह




.कोई दोस्त है  रक़ीब है,तेरा शहर कितना अजीब है....इस पूरी ग़ज़ल को सुनते हुए लगा जैसे किसी   दरगाह  परकिसी पीर की मज़ार पर , किसी संत की समाधी पे या उनके चरणों  में या अपने गुरुदेव के चरणों में हूँ ...उनके एकदम समीप  हूँ.यहाँ  कोई दोस्त है  दुश्मन है.उनके इस शहर में अर्थात अध्यात्मिक ज्ञान की इस दुनिया में डूबे हुए सभी लोग दोस्ती और दुश्मनी की तुच्छ सोच से परे हैं.वह इन शब्दों के जाल को तोड़ चुके हैं.लेकिन मेरे जैसे अज्ञानी की नज़रों में यह बड़ी ही अजीब बात है.
२. वह जो इश्क़ था वह जूनून था,ये जो हिज्र है ये नसीब है......जब मुझे उनसे इश्क़ हुआजब मेरी नज़रें उनसे चार हुईं तो यह इश्क़ जूनून में परिवर्तित हो गया .यह जूनून एक तरह का पागलपनएक प्रकार की दीवानगी है जहां इंसान इतना खो जाता है की उसे अपने आप की सुध नहीं रहतीयहाँ उसही जुनून की बात की गयी है जो अक्सर मीरा और कबीर के प्रेम में नज़र आती है.यह जो जुदाई जका आलम है ....विरह में तड़प रहा हूँ ,यह मेरा नसीब है,मेरी ख़ुशनसीबी है.इसमें बहने वाले आँसू आनंद के प्रतिक हैं जिसमें डूबते डूबते इंसान पूर्ण रूप से धुल जाता  वह एकदम पवित्र हो जाता है.यह मेरा नसीब है की मुझे उनमें डूबने मौका मिला जो शायद बिरलों को ही नसीब है.
३. यहाँ किसका चेहरा पढ़ा करूं,
यहाँ कौन इतना करीब है
....हर इंसान के जीवन में एक तन्हाई है,जुस्तजू है . यहाँ चेहरा पढने का अर्थ पढने से नहीं है बल्कि उसमें डूबने से है . यह डूबने वाला चेहरा केवल गुरु/संत/पीर का ही हो सकता है.यह तलाश गुरु के दिव्या तेज की है क्योंकि वे ही सब सबसे अधिक करीब हैं.बाकी सारे रिश्ते नाते मोह माया के जाल हैं.अंत तक साथ दे ऐसा कोई नहीं.जो नसीब वाला है उसे ही दूरी नसीब हुयी है...विरह में तड़प रहा है...ज्ञान की ओर सत्पथ पर अग्रसर है .इसलिए दुसरे शेर को फिर पढ़िए और आध्यात्म की गहराईयों में गोते लगाईए.
४. मैं किसे  कहूं  मेरे साथ चल,यहाँ सब के सर पे सलीब है.......इस नश्वर संसार में मेरा अंत तक साथ देने वाला कोई नहीं है.में किस से उम्मीद करून साथ की सब ही सांसारिक जीवन जाल में बुरी तरह से जकड़े हुए हैं.केवल गुरु ही मेरा साथ दे सकते हैं क्योंकि गुरु भी वही होता है जिसके सर पे सलीब हो.यहाँ सलीब (ज़िम्मेदारी/बोझ/तड़पउस दिव्या ज्योति से साक्षात्कार का है.जब बात साक्षात्कार की हो सलीब भी परमानन्द में तब्दील हो जाता है.वोसे देखा जाए तो सलीब एक नकारात्मक सहबद है लेकिन गुरु की सकारत्मक उर्जा के आगे यह सलीब ही परमानद है.मेरा सलीब अर्थात गुरु की तलाश है....वो मिलें तो सलीब परमानन्द हो......