दिल की क़लम से
Saturday, May 26, 2012
मेरी कोशिशों के सामने खड़ा है, मेरे मौला
मैं भी दिखादूंगा, दीवानगी किसको कहते हैं ।
संकल्प सक्सेना ।
Thursday, May 24, 2012
है प्रेम द्वंद्व छिड़ा हुआ,
कविता यहाँ की मिट्टी है
हथ्यार क़लम और स्याही हैं
यही कवी की सृष्टि है ।
___संकल्प सक्सेना ।
कई रंगों का भीगा हूँ,
मेरा रंग हो गया मैला
अपने रंग को भूल गया,
हूँ तेरे रंग का भीगा ।
___संकल्प सक्सेना ।
मुझे बदला और ख़ुद बदल गए,
जाने ज़िन्दगी में कितने दर्द भर गए
आज भी प्यार से पुरनम घड़ियों का इंतज़ार है,
न वो हैं, न उनके साए हैं ।
____ संकल्प सक्सेना ।
जब इक दौर से गुज़रता
हूँ
क्यूँ लगता सब तरफ़ इतना शोर
जब दौर गुज़र जाता है
होता सन्नाटा चरों ओर
फिर शोर मचाती हैं यादें
और गुज़रे तन्हाई का दौर
देख रहा हूँ दस्तक देता
चला आ रहा नया दौर ।
___
_संकल्प सक्सेना ।
उसने तोड़ा दिल मेरा,शुक्रिया मैं कहता हूँ
दिल में छुपा ख़ज़ाना,तुमको गा सुनाता हूँ ।
___संकल्प सक्सेना ।
मेरे दिल के ग़ुबार कुछ यूं पढ़ दिए,
जैसे हिज्र में मेरे तुम साथ चल दिए
.
..संकल्प सक्सेना ।
Monday, May 14, 2012
स्कूल डेज़
स्कूल डेज़
देखो प्यारी सुबह आ रही
फिर आज से कल मिलेंगे
कुछ बिछड़े साथी होंगे
कुछ भीनी यादें होंगी ।
फिर लम्हे कल से निचोड़ेंगे
दिलों को अपने टटोलेंगे
फिर यादों के मैदानों में
हम खेल पुराना खेलेंगे ।
फिर सावन यादों का होगा
बरखा एहसासों की होगी
कलियाँ मुस्कानों की होंगी
हम कलरव गीत सुनायेंगे ।
अपनी यादों का ये बसंत
संजोये अपने मन में हम
फागुन के रंगों को लेके
हम छा रहे हैं दिग दिगंत ।
___ संकल्प सक्सेना ।
Friday, May 4, 2012
सखी
सखी
उड़ा कर जुल्फें पवन ने
सांझ को न्योता दिया,
आ गई वो संग एली ( बदरी )
और बरखा ले आई,
छा गयी खुशबू हवा में
सृष्टि ने ली अंगडाई ।
बदला मौसम, आया सावन
बदरी - बरखा , मन लुभावन
खिल गयीं कलियाँ चमन में
कैसा ये पावन समागम ।
जुल्फें - बदरी , सांझ - बरखा
सखी मिलन , सावन है पावन
खो रहा हूँ मैं नशे में
मेरी कविता, आइना मन ।
____संकल्प सक्सेना ।
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