Sunday, October 13, 2013

खुली किताब






खुली किताब

मेरा जीवन एक खुली किताब
जगमगाता, मचलता, रोशन चिराग
मैं भी इसे कहाँ ले चला
तिमिर के पन्ने, था जीवन उदास।

समय के पन्ने पलटते गए
मुझको नज़र आयी फिर एक आस
शायद अंधेरों ने तोड़ा था दम
मुझको नज़र आये मेरे सनम।

मैं था कि पन्ने पलटता नहीं
ये थी की पंखों को देती उड़ान
सहसा ही खुला आरिज़-इ ग़ुलाब
उड़ चली ज़िंदगी प्रीत की फिर उड़ान।

पंछी से पन्नों में महके गुलाब
सुहाना है मंज़र, सुनहरी किताब
'मुरीद अब तो जीवन है उड़ता जहाज़
वो बाहों में  मेरे, समंदर के पार।
                                             __ संकल्प सक्सेना 'मुरीद'।

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