Sunday, September 8, 2013

लब -ए-ग़ज़ल
 
 लब -ए- ग़ुलाब ढूंढ़ते हैं अपना सहारा
अक़्स चूमते हैं, कहें अपना सहारा।।

गलीचा बन महक उठा है, हुस्न तुम्हारा
खुशबू चमन में ढूंढती है, अपना सहारा।।

वो शोख हैं, हसीन हैं, खिलते गुलाब हैं
हम ख़ार ही सही, मगर हैं उनका सहारा।।

ज़ीनत हैं अपने बाग़ की, माली के चश्म ओ नूर
बाहों में भर के लाऊंगा मैं अपना सहारा।।

झुकते हुए चराग हैं, जलवा ए शौक़ है
सजदे में ख़ुमारी है, यही अपना सहारा।।

हुस्न की छवि में कहाँ खो गए 'मुरीद'
हस्ति ए ग़म , ढूंढते हैं अपना सहारा।।
                                                                               __ संकल्प सक्सेना 'मुरीद'

No comments:

Post a Comment