Friday, January 4, 2019

सफर



ये ज़िन्दगी सफर है,कुछ छूटने का डर है
आंखों से जो बहेंगे,उन्हें रोकने का डर है।

दिल से मेरे बहेगी, सरिता तुम्हारे दिल की
तुम आईने से कहदो, कुछ टूटने का डर है।

औरों से क्या कहूँ मैं, तुमने कभी न पूछा
रोती है क्यों नज़र ये, क्या बीतने का डर है।

पल यूं सिमट रहे हैं, आग़ोश में समय के
तन्हाईयों के साये में, भीगने का डर है।
                                               ©संकल्प सक्सेना 'मुरीद' ।
                                              08/12/2018 10:13 PM

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