Friday, January 4, 2019

किताब का आखिरी पन्ना


किताब का आखिरी पन्ना,
नवल जवानी के वो हसीन पल
और बहता हुआ इश्क़ का दरिया
कोई अपने सागर को तरस रहा था
वो मोती अपने बादल को तरस रहा था।

बहारों की लाली,
वो फूलों की लाली
कोई अपने सावन को तरस रहा था
वो बगिया में झूलों को तरस रहा था।

ये पन्नों सा जीवन,
क़िताबों सी उल्झन
'मुरीद' अपने मोहन को तरस रहा था
वो मुरली की तानों को तरस रहा था।

कोई अपने सागर को तरस रहा था
वो मोती अपने बादल को तरस रहा था।
                                                         -- संकल्प सक्सेना 'मुरीद' ।


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