Friday, January 4, 2019

Friday



शाम है, समा है और दस्तूर भी
अब्र है, बारिश है, इश्क़ भी, 
ऐ साक़ी ! बस तेरी कमी है
इस बज़्म में मय लाज़मी है,

हुस्न के नूर से, तू पिला दे अगर
दौर ए आशिक़ी, तू चला दे अगर
क्या ख़ुमारी का मंजर बिख़र जाएगा 
इब्तेदा में, इबादत वो कर जाएगा
रोशनाई में तेरी, संवर जाएगा।
                                        --संकल्प सक्सेना 'मुरीद'।

अब्र = आसमाँ ।
इब्तेदा = शुरुआत ।
इबादत = पूजा / यहां अर्थ meditation से है ।
संवरना = transformation.
ख़ुमारी = नशा ।

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