मौत है अन्तिम पड़ाव, वस्ल का भी पल यही
चार दिन का ये फ़साना, क्या कमाई कुछ हुई?
इश्क़ करता तू अगर, तेरा भी बेड़ा पार था
आज दिन है आख़िरी, अब क्यों ग्लानि हो रही?
दौलत ओ शौहरत की दुनिया, अब नहीं है तेरे संग
बस फ़क़ीरी में मज़े है, कितनी अना है अब रही?
है तमन्ना बस यही, जाएंगे जब जग से 'मुरीद'
कारवां ए आशिक़ी हो, तेरी ख़ुदाई हो रही।
--संकल्प सक्सेना 'मुरीद'।
वस्ल = मिलन
ग्लानि = पश्चाताप
अना = अहंकार / Ego
कारवां = जन समूह
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