Friday, January 4, 2019

वक़्त जीता है और ना मरता है



वक़्त जीता है और ना मरता है
पल में जी लेने, को ये कहता है ।

ओस की बूंद सा, जीवन अपना
कुछ क्षणों का, ये स्वर्ग होता है ।

सागर ए इश्क़ है, जीवन अपना
एक झरने की, तरह बहता है ।

वो जो पत्थर में, छिपा क़ातिल है
मुझको क़ाफ़िर सी सज़ा देता है ।

स्वर्ग की चाह, नहीं है मुझको
ज़र्रे ज़र्रे में, वही बसता है।

हम जो लिखते हैं, अमल करते है
किसको फ़ुरसत है, कौन पढ़ता है ।

कोशिशें बदस्तूर जारी हैं
हौंसले में न फ़रक़ पड़ता है ।

आज संग है, वो कल नहीं होगा
वक़्त अपनी ही चाल चलता है ।

कल जो उस मोड़ पर, मिलें न 'मुरीद'
क्या तुम्हें, सच में फ़रक़ पड़ता है ?
                                              ©संकल्प सक्सेना 'मुरीद' ।
                                             19/11/2018 04:18 PM

तुम जो पढ़कर कर इसे चुराओगे
     हाँ मुझे सच में फर्क पड़ता है 😁😄

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