कश्ति
कितने सूरज डूब गए
हैं, सागर की गहराई
में
मेरी कश्ति मचल रही
है, अपनी ही अंगड़ाई
में ।।
डूबोगे,
ना पार करोगे,
सागर में खो जाओगे
कश्ति ही माझी अपनी
है, पार करो चतुराई
में ।।
हलकी है ये कश्ति
अपनी, माझी नाम सहारा
है
देखो सागर लांघ रही
है, लहरों कि चपलाई
में ।।
तुम भी सूरज से
जागोगे, डूबोगे फिर सांझ
ढले
अहम कि गठरी भारी
होगी, डूबोगे अतुराई में
।।
कश्ति है यह मानव
जीवन, बड़े जतन से
मिलता है
'मुरीद',
सागर पार करेगी, डूबो
तुम रघुराई में ।।
©संकल्प
सक्सेना 'मुरीद'
17/01/2019 08:33 PM
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