Friday, January 4, 2019

पुराना घर



पुराना घर 

जीवन के कई बीते हुए पलों को 
अपने आँगन में समेटे 
एक पुराना घर, आज भी रो रहा है 
चीत्कार है कई यादों की 
गूँज है उन एहसासों की 
जो समय की दौड़ मैं, कहीं दब गए हैं 

खण्डहर नहीं है वो, बूढ़ा हो गया है 
शिकार है अकेलेपन का, अपनों के परायेपन का 

ये यादें नहीं भटकती आत्माएं सी लगती हैं 
किसी के अहंकार का भूत भी यहीं भटकता है 
दस्तक देती है तन्हाई, इसके आँगन में 
कोई तो तड़पा होगा यहां !!

वेदनाओं का ये समन्दर, अथाह गहरा है 
भावनाओं की कई नदियाँ इसमें मिलती हैं 
किन्तु समन्दर के तल में, सिवाय ख़ामोशी के, 
कुछ भी नहीं 
हाँ...कुछ भी नहीं !!
                                                        __संकल्प सक्सेना 'मुरीद'।

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